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    Holi Date: तो 14 मार्च को नहीं खेली जाएगी होली, क्या कहता है पंचांग? पंडित जी ने दूर किया कन्फ्यूजन

    Updated: Thu, 06 Mar 2025 04:32 PM (IST)

    इस साल होली की सही तारीख को लेकर लोगों में काफी कन्फ्यूजन है। कोई कह रहा है कि होली 14 मार्च को खेली जाएगी तो कोई 15 मार्च की बात कह रहा है। हालांकि अब राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंघ के विद्वत परिषद के प्रदेश अध्यक्ष व पिपरा निवासी पंडित आचार्य राकेश मिश्रा ने होली की तारीख को लेकर सारा कन्फ्यूजन दूर कर दिया है।

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    तो 14 मार्च को नहीं खेली जाएगी होली, पंडित जी ने दूर किया कन्फ्यूजन

    जागरण टीम, सारण/गोपालगंज। भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों में हर त्योहार का अपना विशेष महत्व है। ऐसे में फाल्गुन महीने में खुशी एवं उल्लास के रंगों का त्योहार होली भी महत्वपूर्ण है। हालांकि, होली की तिथि (तारीख) को लेकर लोगों में काफी कन्फ्यूजन है।

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    इसी संशय को दूर करते हुए राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंघ के विद्वत परिषद के प्रदेश अध्यक्ष व पिपरा निवासी पंडित आचार्य राकेश मिश्रा ने बताया कि इस साल होलिका दहन 13 मार्च की रात को होगा और 15 मार्च को होली खेली जाएगी।

    होलिका दहन का मुहूर्त

    उन्होंने बताया कि पंचांग के अनुसार, होलिका दहन पूर्णिमा को किया जाता है। इस साल होलिका दहन 13 मार्च की रात्रि में किया जाएगा। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 13 मार्च गुरुवार को सुबह 10 बजकर 35 मिनट से शुरू होकर 14 मार्च को 11 बजकर 11 मिनट तक रहेगा।

    उन्होंने कहा कि 13 मार्च को पूर्णिमा तिथि के साथ ही भद्रा की भी शुरुआत हो जाएगी, इसलिए भद्रा समाप्ति रात्रि 10 बजकर 37 मिनट के पश्चात 10 बजकर 38 मिनट से 11 बजकर 26 मिनट तक का समय होलिका दहन का शुभ समय है। इसी समय होलिका दहन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि 15 मार्च शनिवार को ही रंगों का पर्व होली शास्त्र सम्मत है।

    बदल रही होली की पुरानी परंपरा, कम सुनाई देती फाग की राग

    बदलते दौर मे अश्लील गीतों के आगे गांवों मे अब फाग की राग कम सुनाई देती है। होली के पुराने गीतों पर पूर्ण रूप से अश्लीलता हावी होने लगी है। ऐसे में होली की मस्ती व उमंग भी गायब होती जा रही है। अब होली खेले रघुवीरा अवध में, होली खेले रघुवीरा..., के बोल बदल गए हैं। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे रिश्ते औपचारिक होते गए, होली की पुरानी परंपरा भी बदलती चली जा रही है।

    परंपरा के प्रति पुराने उत्साह में दिनों दिन कमी होने से गांवों मे होलिका दहन की परंपरा भी विलुप्त होती जा रही है। होलिका दहन की पुरानी परंपरा पर अपसंस्कृति हावी होती जा रही है। मालूम हो कि आज से कोई दो-ढाई दशक पूर्व गांवों में बसंत पंचमी के दिन से ही होलिका दहन की तैयारी शुरू कर दी जाती थी।

    बसंत पंचमी की रात गांव के बड़े बुजुर्ग व युवा वर्ग के लोग होलिका दहन स्थल पर नया बांस लगा देते थे। उसके बाद बसंत पंचमी की रात्रि से ही गांव के गवैया होली के पुराने पारंपरिक गीतों को गाने लगते थे। बसंत पंचमी की रात्रि से लगातार चालीस दिन होली की रात्रि तक होली गीतों के तान पर ढोलक की थाप गांवों में सुनाई देती थी।

    होली के एक दिन पहले होलिका दहन स्थल पर होलिका दहन के लिए पर्याप्त मात्रा में पुआल, गोईठा, उपला, पुरानी खरही व बगीचे के सूखे पत्तों को जमा किया जाता था। फिर देर संध्या मे किये गये होलिका दहन के उपरांत होली की हुड़दंग शुरू हो जाती थी, लेकिन वर्तमान समय में ऐसा नहीं हो रहा है।

    अब होलिका दहन की परंपरा का जैसे-तैसे निर्वहन किया जा रहा है। अब होलिका दहन की परंपरा कहीं-कहीं निभाई जा रही है। वर्तमान समय पर हावी आधुनिकता के आगे पुरानी होली की हुड़दंगता अब गांवों मे भी नही के बराबर देखी जाती है।

    कम होती जा रही फाल्गुनी मिठास

    पुराने जमाने मे होली के दिन सुबह में धूल उड़ाने की परंपरा के बाद कीचड़ व मिट्टी की होली होती थी, लेकिन समय में आये बदलाव की वजह से अब इसके बीच कपड़ा फाड़ होली ने भी अपना पांव जमा लिया है। गांवों की होली मे होने वाले हंगामे की वजह से इसका स्वरूप बदलकर अब औपचारिकता भर रह गयी है। इससे फागुन का मजा जहां फीका लगने लगा है। वहीं दिनों दिन फाल्गुनी मिठास भी कम होती जा रही है।

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